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हम हिंदी नहीं बोलेंगे

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अंतिम बार हिंदी दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 2016 में लिखी थी। आज 4 वर्षों के पश्चात्  पुनः कलम उठाई और हिंदी में लिखने का एक तुच्छ प्रयास किया, एक कठोर प्रयास। यह लेख छपने के बाद बहुत पिटूंगा, ज्ञात है । जी हाँ! पूरा दक्षिण और उत्तर पूर्व भारत पिछले 70-80 वर्षों से इस का मोटा शीर्षक बारम्बार कहते हुए एकमत से हिंदी को, या विधिपूर्वक कहूँ तो हिंदी के "आरोपण" को नकारता आ रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात् जिस हिंदी के समक्ष सम्पूर्ण "आर्यभाषी" भारत ने अभ्यर्पण कर दिया, उसके मढ़े जाने  के विरुद्ध तमिल नाडु जैसा राज्य सदा अटल रहा। भारत का संविधान जहाँ  22 भाषाओँ को आठवीं अनुसूची में आधिकारिकता प्रदान करता है, वहीं वह अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को भारत कि राजभाषा का दर्जा देते हुए वही तक सीमित कर देता है। आपको बता दूँ कि दक्षिण भारत के कड़े विरोध का ही परिणाम है कि भारत गणराज्य कि कोई "राष्ट्रभाषा" नहीं है, जिसे लोग गलती से, या अधिकतर जान बूझके हिंदी मान लेते हैं। चेन्नई के "पार्क" रेलवे स्टेशन पर एक कार्यकर्ता हिंदी नामपट्ट परकालिक पोतता हुआ  सन्न 1937 म